जीएसटी छोटी इकाईयों का कत्लखाना है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करने के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मालिको ने 1950 में इस कत्लखाने की ड्राफ्टिंग की थी। इसे इस तरह ड्राफ्ट किया गया है, कि यह बड़ी कम्पनियों को अतिरिक्त फायदा पहुंचा कर छोटी इकाईयों को बाजार से बाहर कर देता है। फिर जिन भी देशो में बहुराष्ट्रीय कम्पनियां गयी वहां उन्होंने जीएसटी लागू करवाया। और जहाँ जहाँ जीएसटी लागू हुआ वहां छोटी इकाईयों का कारोबार बड़ी कम्पनियों के हिस्से में चला गया।
वैट जीएसटी का छोटा भाई है, और यह भी बड़ी इकाईयों को अतिरिक्त लाभ देता है। भारत में ऍफ़ डी आई आने के बाद पहले वेट आया, और अब वे जीएसटी लेकर आये है। पर छोटी कम्पनियों को खत्म करने में जीएसटी हर लिहाज से वेट का बाप है।
यह जवाब बताता है कि --- क्यों जीएसटी की दरें एक चिल्लर मुद्दा है, और जीएसटी की दर घटाकर यदि 5% भी कर दी जाए तो भी कुछ ही वर्षो में लाखों छोटे और मझौले कारोबारी अपने धंधे से हाथ धो बैठेंगे !!
ये विवरण निम्लिखित प्रश्नों के भी जवाब देते है :
अ) भारत स्वदेशी लड़ाकू विमान बनाने की क्षमता क्यों नहीं जुटा पाया
ब) भारत तकनिकी उत्पादन में अमेरिका की तुलना में क्यों पिछड़ गया
स) कैसे हम स्वदेशी हथियारों का उत्पादन करके आत्मनिर्भर हो सकते है ?
द) भारत में बेरोजगारी, महंगाई एवं गरीबी क्यों बनी हुयी है ?
किसी देश की इंजीनियरिंग गुणवत्ता को तय करने वाले कई तत्व है। इन तत्वों में निम्नलिखित 5 तत्व इसे सबसे अधिक प्रभावित करते है :
(A) अदालतें , (B) कर प्रणाली, (C) भू प्रबंधन के क़ानून , (D) जज-पुलिस-राजनेता का भ्रष्टाचार , (E)गणित-विज्ञान की शिक्षा का स्तर
जजों का भ्रष्टाचार इंजीनियरिंग गुणवत्ता को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। दूसरा नंबर कर प्रणाली का है। इस जवाब मैं मैंने बताया है कि मौजूदा कर प्रणाली किस तरह भारत में की छोटी-मझौली इकाईयों का गला दबा रही है। तथा स्वदेशी तकनिकी उत्पादन को शूट अप करने के लिए प्रस्तावित वेल्थ टेक्स का ढांचा क्या होगा।
गणित विज्ञान के स्तर को सुधारने के लिए हमें क्या कदम उठाने चाहिए, इसका विवरण इस लेख में देखें :
Pawan Jury का जवाब - भारत हथियारों की इंजीनियरिंग में अमेरिका को कैसे पछाड़ सकता है?
किसी भी देश की राजनीति बुनियादी रूप से सेना पर और सेना टेक्स प्रणाली पर चलती है। भारत के बहुधा कार्यकर्ता राजनीति में तो रुचि लेते है, किन्तु टेक्स प्रणाली को समझने में रुचि नहीं दिखाते। पेड मीडिया भी कार्यकर्ताओ को टेक्स सिस्टम समझने से दूर रखना चाहता है, अत: वे टेक्स को तकनिकी विषय के रूप से प्रचारित करते है।
इस वजह से देश के टेक्स सिस्टम पर राय बनाने के लिए कार्यकर्ता पेड आर्थिक विशेषज्ञों और पेड मीडिया कर्मियों पर निर्भर हो जाते है, और वे नागरिको को टेक्स सिस्टम पर बड़े पैमाने पर भ्रमित करने में कामयाब हो जाते है। सरकारे भी अपने स्तर पर कार्यकर्ताओ को टेक्स सिस्टम से दूर रखने का प्रयास करती है।
दरअसल क़ानून एवं टेक्स को समझने के लिए किसी भी प्रकार का विशेषग्य होने की जरूरत नहीं है, अत: कार्यकर्ताओ को टेक्स सिस्टम समझने के लिए विशेषज्ञों पर निर्भर भी नहीं रहना चाहिए। यह एकदम कॉमन सेन्स पर आधारित होता है, और जो व्यक्ति अख़बार पढ़ सकता है, वह टेक्स सिस्टम को भी खुद अपने स्तर पर आसानी से समझ सकता है।
दिए गए विवरण समझने के लिए पाठक के पास कक्षा 8 तक की गणित समझने की योग्यता आवश्यक है। कृपया एक कागज, पेन एवं केलकुलेटर ले लें, ताकि इसे समझने में आसानी रहे.
निचे एक टेबल की इमेज व इसका पीडीऍफ़ भी दिया गया है। टेबल को डाउनलोड करके प्रिंट आउट निकाल लें। यदि पढ़ते समय आपके हाथ में टेबल रहेगी तो इसे समझना आपके लिए बेहद आसान हो जाएगा।
जीएसटी में मौजूद गंभीर समस्याओ -- MTP , DTSTP और RTP का विवरण एवं समाधान :
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(1) मिसिंग ट्रेडर प्रॉब्लम ; Missing Trader Problem = MTP क्या है ?
(2) कैसे MTP कुछ ही वर्षो में लाखों छोटे कारोबारियों को बाजार से बाहर कर देगा, और उनका बिजनेस बड़ी इकाइयों के हाथ में चला जाएगा।
(3) डबल टेक्सेशन ऑन स्मॉल ट्रेडर ; Double Taxation On Small Trader Problem = DTSTP क्या है ?
(4) कैसे DTSTP छोटे कारोबारियों को जीएसटी मॉडल में आने के लिए बाध्य करेगा, और अंत में उन्हें मिसिंग ट्रेडर प्रॉब्लम की चपेट में लेकर बाजार से बाहर कर देगा ?
(5) जीएसटी में मौजूद रिग्रेसिव टेक्स प्रॉब्लम ; Regressive Tax Problem = RTP क्या है ?
(6) कैसे जीएसटी छोटी इकाईयों की लागत अतिरिक्त रूप से बढ़ाकर उन्हें बाजार से बाहर कर देगा ?
(7) जीएसटी-एन पर विदेशी कम्पनियों का निर्णायक नियंत्रण है।
(8) समाधान - वेल्थ टेक्स
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(!) कारोबारी श्रृंखला क्या है ?
क्रय-विक्रय में दो पक्षकार होते है। एक कारोबारी, दूसरा उपभोक्ता। किन्तु उपभोक्ता तक माल कोई एक कारोबारी नहीं पहुंचाता। कारोबारियों की एक पूरी श्रृंखला होती है। यह श्रृंखला कच्चे माल के उत्पादक से शुरू होकर निर्माता तक जाती है और उपभोक्ता पर खत्म हो जाती है।
उदाहरण के लिए , धागा बनाने वाला कारोबारी कपास खरीदता है तथा इससे धागा बनाकर बेच देता है। कपड़ा मिल चलाने वाला ये यार्न खरीद कर इससे कपड़ा बनाता है, और प्रोसेस हाउस से प्रोसेस करवाकर एजेंट को बेचता है। एजेंट यह कपडा होलसेलर को, और होलसेलर रिटेलर को बेच देता है। रिटेलर से कपडा उपभोक्ता खरीदता है। इस तरह एक श्रृंखला में 5 से लेकर 25 तक कारोबारी हो सकते है। सुविधा की दृष्टी से इस लेख में निर्माता, सप्लायर, एजेंट, होलसेलर, डीलर , रिटेलर आदि सभी कारोबारियों को ट्रेडर कह कर सम्बोधित किया गया है।
(!!) इनपुट क्रेडिट क्या है ?
मान लीजिये कि अने 1000 का माल ब को बेचा। बने इसे स को और स ने उपभोक्ता को बेचा ; अ --> ब --> स --> उपभोक्ता
अ का ब को बिल : 1000 + 200 ( 1000 रूपये पर जीएसटी 20% ) = 1200 रूपये।
यहाँ अ ने ब से 200 रूपये का जीएसटी प्राप्त किया है। अयह 200 रूपये सरकार को जमा करेगा। चूंकि ये 200 रूपये अ को बने दिए है अत: 200 रूपये की यह राशि अगले चरण में ब का इनपुट क्रेडिट बन जाएगी।
अब ब इस माल पर 100 रूपये कमाना चाहता है। अत: वह यह माल स को 1100 रूपये में बेचेगा। पर चूंकि ब अपने बिल में माल की कीमत अब 1100 रू लिखेगा, अत: बिल में जीएसटी भी 1100 रूपये ही लगाया जाएगा।
ब का स को बिल : 1100 + 220 ( 1100 रूपये पर जीएसटी 20% )
यहाँ ब ने स को जब माल बेचा तो जीएसटी के 220 रूपये प्राप्त किये है। अब चूंकि ब जीएसटी के 200 रूपये अ को पहले ही दे चुका है, अत: ब सरकार में जीएसटी के सिर्फ 20 रूपये ही जमा करेगा, और 200 रूपये का सरकार से इनपुट क्रेडिट प्राप्त करेगा।
( कृपया ऊपर दिया गया विवरण फिर से पढ़े। क्योंकि पूरा जीएसटी की पूरी प्रक्रिया इनपुट क्रेडिट पर ही टिकी हुयी है )
किन्तु इनपुट क्रेडिट वही ट्रेडर प्राप्त कर सकता है जो फुल जीएसटी में पंजीकृत है। यदि ब को इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगा तो ब पर डबल टेक्स ( 200 जो उसने अ को दिए और + 220 जो उसे सरकार को जमा करने है = 440 रू ) आ जाएगा। यह डबल टेक्स उसके माल की लागत में जुड़ जायेगा और उसका माल महंगा हो जाएगा। जीएसटी में छोटे कारोबारियों ( कंपोजिट एवं अपंजीकृत ट्रेडर ) को इनपुट क्रेडिट प्राप्त करने से वंचित कर दिया गया है !!
पेड मीडिया द्वारा यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि जीएसटी सिंगल टेक्स सिस्टम है। असलियत यह है कि यह छोटे ट्रेडर्स पर दोहरा कराधान डाल देगा। दो बार टेक्स जुड़ने से छोटे कारोबारियों के माल की लागत बढ़ जायेगी और इनपुट क्रेडिट वाले ट्रेडर उनसे माल खरीदना बंद कर देंगे। अब इस डबल टेक्स से बचने के लिए छोटे ट्रेडर 20% वाले इनपुट क्रेडिट सिस्टम में जाने के लिए बाध्य हो जायेंगे, और फुल जीएसटी वाले इनपुट क्रेडिट सिस्टम में जाने से वे मिसिंग ट्रेडर प्रॉब्लम की चपेट में आकर बाजार से बाहर हो जाएंगे !!
(1) मिसिंग ट्रेडर प्रॉब्लम = MTP क्या है ?
माना कि किसी कारोबारी शृंखला में 3 कारोबारी और 1 उपभोक्ता है।
बख्तावर मल ----> छोटू सिंह ----> मांगी लाल ----> उपभोक्ता
(a) बख्तावर 10 हजार का माल छोटू को बेचता है। माना कि इस माल पर जीएसटी की दर 20% है।
बख्तावर द्वारा छोटू को दिया गया बिल इस तरह होगा :
माल की कीमत : 10,000 रू
जीएसटी : 2000 रू ( 10 हजार का 20% = 2000 )
योग : 12,000 रू
छोटू सिंह बख्तावर से माल और बिल लेगा और 12000 रूपये बख्तावर को चुका देगा। चुकाए गए इन 12 हजार में 10 हजार माल की कीमत है और 2000 जीएसटी है।
यहाँ बख्तावर द्वारा सरकार को देय जीएसटी : 2000 रू है।
(b) अब मान लीजिये छोटू इस माल पर 1000 रूपये मुनाफा कमाना चाहता है। तो छोटू अपने क्रय मूल्य में 1000 और जोड़ कर यह माल 11 हजार में मांगी लाल को बेच देगा। ( छोटू का क्रय मूल्य 10,000 + 1000 मुनाफा = 11, 000 रू )
छोटू द्वारा मांगी लाल को दिया गया गया बिल इस तरह होगा :
माल की कीमत : 11,000 रू
जीएसटी : 2200 रू ( अब जीएसटी विक्रय मूल्य 11,000 पर लगेगा। )
योग : 13,200 रु
छोटू माल के 11,000 रूपये अपने पास रख लेगा। अब छोटू 2200 का क्या करेगा ? चूंकि छोटू जीएसटी के 2000 रू बख्तावर को दे चुका है, अत: छोटू अब इन 2200 रूपये में से सरकार को 200 रूपये ही चुकाएगा, तथा 2000 रूपये का सरकार से इनपुट क्रेडिट प्राप्त करेगा। इस तरह सरकार के पास जीएसटी के 2000 रूपये बख्तावर के माध्यम से और 200 रूपये छोटू के माध्यम से जमा होंगे।
छोटू द्वारा सरकार को देय जीएसटी : 200 रू
c) अब मान लीजिये कि मांगी लाल इस माल पर 1000 रूपये मुनाफा कमाना चाहता है। तो मांगी लाल अपने क्रय मूल्य में 1000 और जोड़ कर यह माल 12 हजार में उपभोक्ता को बेच देगा। ( मांगी लाल का क्रय मूल्य 11,000 + 1000 मुनाफा = 12,000 रू )
मांगी लाल द्वारा उपभोक्ता को दिया गया गया बिल इस तरह होगा :
माल की कीमत : 12,000 रू
जीएसटी : 2400 रू ( अब जीएसटी विक्रय मूल्य 12 हजार पर लगेगा। )
योग : 14,400 रु
मांगी लाल माल के 12,000 रूपये अपने पास रख लेगा। अब मांगी लाल 2400 का क्या करेगा ? चूंकि मांगी लाल जीएसटी के 2200 रू बख्तावर को दे चुका है अत: मांगी लाल अब इन 2400 रूपये में से सरकार को 200 रूपये ही चुकाएगा तथा 2200 रूपये का सरकार से इनपुट क्रेडिट प्राप्त करेगा। इस तरह सरकार के पास जीएसटी के 2000 रूपये बख्तावर के माध्यम से और 200 रूपये छोटू के माध्यम से तथा 200 रू मांगी लाल के माध्यम से जमा होंगे।
मांगी लाल द्वारा सरकार को देय जीएसटी : 200 रू
अब मान लीजिये कि छोटू सिंह जीएसटी नहीं चुकाता और फरार हो जाता है, या अपना धंधा बंद कर देता है या दिवालिया हो जाता है या मर जाता है।
तो जीएसटी क़ानून की धारा 16.2.c के अनुसार मांगी लाल को 2200 का इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगा। मतलब मांगी लाल को जीएसटी के पूरे 2400 रूपये सरकार को चुकाने होंगे !!! उसे उस राशि में छूट नहीं मिलेगी जो राशि मांगी लाल ने छोटू सिंह को दे दी थी !!! अत: छोटू सिंह ने यदि सरकार में जीएसटी जमा नहीं किया है तो मांगी लाल फिर से टेक्स चुकाएगा !!!
इसी प्रकार, यदि छोटू सिंह फरार नहीं होता है किन्तु बख्तावर मल बिना जीएसटी चुकाए फरार हो जाता है तो छोटू सिंह को जीएसटी के 2000 रूपये सरकार के खाते में फिर से चुकाने होंगे। छोटू को उस राशि की छूट नहीं मिलेगी जो उसने बख्तावर को जीएसटी के लिए चुकाई थी !!!
निचे वह धारा दी गयी है जो मिसिंग ट्रेडर प्रॉब्लम के लिए जिम्मेदार है।
(2) Notwithstanding anything contained in this section, no registered person shall be entitled to the credit of any input tax in respect of any supply of goods or services or both to him unless,----
(a) he is in possession of a tax invoice or debit note issued by a supplier registered under this Act, or such other tax paying documents as may be prescribed;
(b) he has received the goods or services or both.
(c) subject to the provisions of section 41, the tax charged in respect of such supply has been actually paid to the Government, either in cash or through utilization of input tax credit admissible in respect of the said supply.
See full bill at : http://gstcouncil.gov.in/sites/d...
अध्याय V ; इनपुट टेक्स क्रेडिट
16. इनपुट क्रेडिट प्राप्त करने के लिए योग्यता एवं शर्ते।
(2) दी गयी परिस्थितियों के सिवाय किसी भी प्रकार की सेवा एवं / और माल की आपूर्ति करने के एवज में इनपुट क्रेडिट प्राप्त करने के लिए कोई भी कारोबारी किसी भी प्रकार का दावा नहीं कर सकेगा -
(a) यदि उसके पास इस अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत किसी आपूर्तिकर्ता द्वारा जारी किया गया टेक्स इनवॉइस या डेबिट नोट या ऐसा कोई कर प्रपत्र हो जिसे इस अधिनियम द्वारा निर्धारित किया गया हो।
(b) उसने माल या / और सेवा प्राप्त की हो।
(c) ऐसी किसी आपूर्ति के एवज में निर्धारित कर वास्तविक रूप से सरकार को चुकाया गया हो, या तो नकद रूप में या ऐसी आपूर्ति के लिए निर्धारित स्वीकार्य इनपुट क्रेडिट के रूप में।
सरकार ने जीएसटी का अधिकृत हिन्दी अनुवाद जारी नहीं किया है। सिर्फ अंग्रेजी वर्जन ही जारी किया है। विपक्ष के किसी भी सांसद एवं नेता ने भी आज तक इसका हिन्दी अनुवाद जारी करने की मांग नहीं की है !! उल्लेखनीय है कि, भूमि अधिग्रहण अध्यादेश एवं FRDI क़ानून के भी हिन्दी अनुवाद सरकार ने जारी नहीं किये है !! मैं कई बार pmoindia पर इन कानूनों के हिन्दी अनुवाद जारी करने के लिए ट्विट कर चुका हूँ, और पीएम की अधिकृत वेबसाईट पर अर्जी भी भेज चुका हूँ।
यदि हमारे नेता यह मानते है कि भारत के आम नागरिक अंग्रेजी के इतने बड़े विशेषग्य है, तो मेरा मानना है कि उन्हें अपने भाषण अंग्रेजी में देने शुरू कर देने चाहिए !! बहरहाल यदि किसी के पास जीएसटी का अधिकृत हिन्दी अनुवाद उपलब्ध हो तो मुझे सूचित करें। कृपया किसी निजी वेबसाइट वगैरह का लिंक न दें। अदालतों एवं दावों में सिर्फ गेजेट में प्रकाशित या वित्त मंत्रालय द्वारा जारी अनुवाद ही मान्य एवं अधिकृत होते है।
(2) कैसे MTP कुछ ही वर्षो में लाखों छोटे कारोबारियों को बाजार से बाहर कर देगा और उनका बिजनेस बड़ी इकाइयों के हाथ में चला जाएगा ?
मान लीजिये कि बाजार में 10 बड़े ट्रेडर्स L1 , L2 ,.......... L10 है।
और 1000 छोटे ट्रेडर्स S1 , S2 ,....... S1000 है।
ऐसी स्थिति में L1 से L10तक कोई भी उत्पादक या ट्रेडर फरार नही होगा, क्योंकि उनके पास काफी फैली हुयी और प्रचुर संपत्तियां होती है। तथा घाटे की स्थिति में वे अकार्यशील सम्पत्तियो के विवरण देकर खुले आम टेक्स चोरी की कानूनी व्यवस्था बना लेते है, अत: भागने की नौबत नहीं आती।
लेकिन ज्यादातर संभावना है कि इन 1000 छोटे ( S1000 ) में से 1% ट्रेडर धोखाधड़ी या घाटा खाने के कारण कर चोरी करेंगे, और फरार हो जायेगे।
ऐसा होने पर शेष 990 ईमानदार छोटे ट्रेडर्स को भी संदेह की नजरो से देखा जाएगा, और जोखिम के चलते व्यापारी उनके साथ धंधा करने से घबराएंगे।
कारोबारी यह सोचेंगे कि --- "मेरा सप्लायर भी एक छोटा कारोबारी है। यदि कल वह अपना धंधा बंद करके चला जाता है, तो मुझ पर फिर से जीएसटी चुकाने का भार आ जाएगा। अत: मुझे ऐसे ट्रेडर से माल लेना चाहिए जिसके रातों रात गायब होने की संभावनाएं न्यूनतम हो\"।
जाहिर है वह किसी ऐसे ट्रेडर से माल लेना शुरू कर देगा जो कि नामचीन है, या जिसके पास काफी फैली हुयी संपत्तियां है।
अत: इस क़ानून के चलते सिर्फ 1% बेईमानो के कारण 99% ईमानदार व्यापारी अपना व्यापार खोना शुरू कर देंगे !!! और यह सब इतनी धीमी गति से होता है कि यह बात कभी निकलकर नहीं आ पाती कि जीएसटी के कारण वे अपने ग्राहक गँवा रहे है।
(3) डबल टेक्सेशन ऑन स्मॉल ट्रेडर = DTSTP प्रॉब्लम क्या है ?
इस समस्या का सामना छोटे कारोबारियों को करना पड़ेगा। जीएसटी में यह व्यवस्था है कि यदि कोई कारोबारी फुल जीएसटी में नहीं आना चाहता तो उसके पास दो विकल्प है :
(!) पहला विकल्प यह है कि -- यदि उसका टर्न ओवर 20 लाख सालाना से कम है और वह जीएसटी मॉडल में नहीं आना चाहता तो वह खुद को जीएसटी में पंजीकृत नहीं कराएगा। किन्तु यदि वह जीएसटी से बाहर रहेगा तो उसे चुकाए गए टेक्स पर इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगा।
(!!) दूसरा विकल्प -- यदि उसका टर्न ओवर 75 लाख से 20 लाख के बीच है तो वह कम्पोजिशन श्रेणी में जा सकता है। कम्पोजिशन श्रेणी में जाने पर उसे सभी प्रकार के माल पर सिर्फ 0% से 2% के बीच टेक्स देना होगा। किन्तु कम्पोजिशन में जाने वाले ट्रेडर को भी इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगा ।
स्वाभाविक रूप से छोटे कारोबारी या तो कम्पोजिशन श्रेणी में जाएंगे या फिर जीएसटी से पूरी तरह से बाहर रहेंगे। DTSTP के इस अध्याय में कम्पोजिशन एवं अपंजीकृत कारोबारियों को छोटे ट्रेडर कह कर सम्बोधित किया गया है।
(4) कैसे DTSTP छोटे कारोबारियों को जीएसटी मॉडल में आने के लिए बाध्य करेगा , और अंत में उन्हें मिसिंग ट्रेडर प्रॉब्लम की चपेट में लेकर बाजार से बाहर कर देगा ?
( एक कागज़, पेन और केल्कुलेटर लीजिये ताकि आप नीचे दी गयी गणना स्वयं कर सके। यदि आपको लगता है कि आप जीएसटी, वेल्थ टेक्स आदि को बिना केल्कुलेटर या एक्सेल के समझ सकते है, तो मेरे विचार में या तो आप सुपर जीनियस है या फिर भ्रांति के शिकार है )
निचे दी गयी टेबल का पीडीऍफ़ यहाँ से डाउनलोड करें : Gst_Table.pdf
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DTSTP समस्या को समझने के लिए हम दो विक्रय श्रुंखलाओ का अध्ययन करेंगे।\
(A) मेवा राम --> लोभ चंद ( बड़ा ट्रेडर ) ---> चैनसुख ---> उपभोक्ता , (B) मेवा राम --> छोटू लाल ( छोटा ट्रेडर ) ---> चैनसुख ---> उपभोक्ता ,
श्रृंखला (A) में सभी ट्रेडर जीएसटी में नियमित रूप से पंजीकृत है।
श्रृंख्ला (B) में छोटू लाल 75 लाख से कम टर्न ओवर वाला कारोबारी है अत: वह कंपोजिट ट्रेडर है या वह अपंजीकृत है।
हम यह मान कर चलते है कि माल की उत्पादन लागत 9800 रूपये है तथा प्रत्येक कारोबारी 200 रूपये का लाभ कमाता है।
जब सभी ट्रेडर जीएसटी नियमित ढंग से पंजीकृत है।
(A)मेवा राम --> लोभ चंद ---> चैनसुख ---> उपभोक्ता
कृपया तालिका में खंड A की पंक्ति संख्या 1 , 2 , 3 देखें
पंक्ति 1 : मेवा राम ---> लोभ चंद
मेवा राम उत्पादक है। वह माल का उत्पादन करता है जिसकी लागत 9800 रू है। मेवा राम इसमें 200 रूपये लाभ के जोड़ता है और लोभ चंद को यह माल 10,000 रू में बेच देता है।
मेवा राम की लागत : 9800
जोड़ा गया लाभ : 200
लागत + लाभ = 10000 रूपये
जीएसटी = 2000 रू ( 10,000 का 20% )
मेवा राम का लोभ चंद को बिल यानि विक्रय मूल्य : 10,000 रू + 2000 = 12,000 रू ( यहाँ 2000 रूपये मेवा राम द्वारा लोभ चंद को दिया गया इनपुट क्रेडिट है ) ; मेवा राम द्वारा सरकार को जमा किया जाने वाला जीएसटी : 2000 रू
कृपया ध्यान दें - जीएसटी में अंतिम विक्रय मूल्य में दो मदें होती है -- कीमत और जीएसटी। लेकिन यदि विक्रेता कंपोजिट ट्रेडर है या फिर अपंजीकृत है तो इनके द्वारा जारी किये गए बिल पर जीएसटी नहीं लिखा जाएगा। और लागत मूल्य में भी दो मदें होती है -- लागत मूल्य एवं जीएसटी इनपुट क्रेडिट। इस इनपुट क्रेडिट को प्राप्त करने का बाद में दावा किया जाना है।
पंक्ति 2 : लोभ चंद ---> चैनसुख
लोभ चंद की लागत : 10,000 रू + 2000 रू मेवा राम से प्राप्त इनपुट क्रेडिट = 12000 रूपये
लोभ चंद द्वारा जोड़ा जाने वाला लाभ = Rs 200
लोभ चंद का जीएसटी रहित विक्रय मूल्य : 10,000 रू लागत + 200 रू लाभ = 10,200 रू
जीएसटी = 2040 रूपये ( 10,200 रू का 20% )
लोभ चंद का जीएसटी सहित विक्रय मूल्य = 10200 रू + 2040 रू चैनसुख को दिया गया इनपुट क्रेडिट = Rs 12240
लोभ चंद द्वारा सरकार को जमा किया जाने वाला जीएसटी : 2040 रू - 2000 रू मेवा राम से प्राप्त इनपुट क्रेडिट = 40 रू
पंक्ति 3 : चैनसुख ---> उपभोक्ता
चैनसुख की लागत = 10,200 रू + 2040 रू लोभ चंद से प्राप्त इनपुट क्रेडिट = 12,240 रू
चैनसुख द्वारा जोड़ा जाने वाला लाभ = 200 रू
चैनसुख का जीएसटी रहित विक्रय मूल्य : 10,200 रू लागत + 200 रू लाभ = 10,400 रू
जीएसटी = Rs 2080 ( 10,400 रू का 20% )
चैनसुख का जीएसटी सहित विक्रय मूल्य : 10,400 रू + 2080 रू जीएसटी = 12480 रू
चैनसुख द्वारा सरकार के खाते में जमा जीएसटी : 2080 रू - 2040 रू = 40 रू
यहाँ चैनसुख सरकार को जीएसटी के 40 रूपये चुकाएगा एवं 2040 रूपये का इनपुट क्रेडिट प्राप्त करेगा, क्योंकि चैनसुख ने जीएसटी के 2040 रू लोभ चंद को चुकाए थे और उसके बदले में इनपुट क्रेडिट प्राप्त किया था। अत: 2080 में से 2040 को घटा दिया गया है।
दूसरे शब्दों में यदि आपूर्ति श्रुंखला में यदि सभी जीएसटी ट्रेडर हो तो अंतिम उपभोक्ता के लिए माल की कीमत = 12,480 रू है। तथा इसमें 2040 रूपये इनपुट क्रेडिट है।
सरकार को जमा किया गया जीएसटी = 2000 रू + 40 रू + 40 रू = 2080 रू
(B) जब आपूर्ति शृखला में एक छोटा ट्रेडर ( कंपोजिट या अपंजीकृत कारोबारी ) है।
मेवा राम --> छोटू लाल ( छोटा ट्रेडर ) ---> चैनसुख ---> उपभोक्ता
कृपया तालिका में खंड B की पंक्ति संख्या 1 , 2, 3 देखें
पंक्ति 1 : मेवा राम --> छोटू लाल
मेवा राम की लागत : 9800
जोड़ा गया लाभ : 200
लागत + लाभ = 10000 रूपये
जीएसटी = 2000 रू ( 10,000 का 20% )
मेवा राम का छोटू लाल को बिल ( विक्रय मूल्य ) : 12,000 रू + 0 इनपुट क्रेडिट = 12,000 रू !!!
मेवा राम द्वारा सरकार को जमा किया जाने वाला जीएसटी : 2000 रू
यहाँ इनपुट क्रेडिट शून्य क्यों है ? क्योंकि छोटा कारोबारी चाहे वह कम्पोजिट ट्रेडर हो या अपंजीकृत, दोनों ही परिस्थितियों में न तो वह इनपुट क्रेडिट का दावा कर सकता है और न ही वह इनपुट क्रेडिट किसी अन्य कारोबारी को अग्रेसित कर सकता है !! और छोटू लाल यहाँ छोटा ट्रेडर है।
पंक्ति 2 : छोटू लाल ---> चैनसुख
छोटू लाल की लागत : 12,000 रू + 0 इनपुट क्रेडिट = 12000 रूपये
छोटू लाल द्वारा जोड़ा जाने वाला लाभ = Rs 200 रू
छोटू लाल का जीएसटी रहित विक्रय मूल्य : 12,000 रू लागत + 200 रू लाभ = 12,200 रू
जीएसटी = 0 रूपये ( छोटे ट्रेडर पर जीएसटी 0% से 2% तक है। हमने इस गणना में जीएसटी 0% रखा है )
छोटू लाल का जीएसटी सहित चेनसुख को विक्रय मूल्य = 12,200 रू + 0 इनआउट क्रेडिट = 12200 रू
चेनसुख को छोटू लाल से 0 इनपुट क्रेडिट मिलेगा। क्योंकि छोटू लाल या तो कम्पोजिट ट्रेडर है या जीएसटी में अपंजीकृत है !!
और अब यहाँ जीएसटी का सबसे मारक प्रावधान आता है !!!
पंक्ति 3 : चैनसुख ---> उपभोक्ता
चैनसुख की लागत = 12,200 रू + 0 रू इनपुट क्रेडिट = 12,200 रू
चैनसुख द्वारा जोड़ा जाने वाला लाभ = 200 रू
चैनसुख का जीएसटी रहित विक्रय मूल्य : 12,200 रू लागत + 200 रू लाभ = 12,400 रू
जीएसटी = Rs 2480 ( 12,400 रू का 20% )
चैनसुख का जीएसटी सहित विक्रय मूल्य : 12,400 रू + 2480 रू जीएसटी = 14,480 रू !!!
चैनसुख द्वारा सरकार के खाते में जमा जीएसटी : 2,480 रू
दूसरे शब्दों में यहाँ उपभोक्ता को वही माल खरीदने के लिए चेनसुख को 14,880 रूपये का भुगतान करना पड़ेगा।
इस तरह किसी आपूर्ति श्रृंखला में एक छोटे ट्रेडर के आ जाने से यहाँ माल की कीमत 2400 अधिक हो गयी है !!! जहां जहाँ भी छोटे ट्रेडर विक्रय श्रृंखला में होंगे वहां माल की कीमत 20% से ( या 12% , 18% या 28% जो भी जीएसटी की दर हो ) बढ़ जायेगी !!
(4) कैसे DTSTP छोटे कारोबारियों को जीएसटी मॉडल में आने के लिए बाध्य करेगा , और अंत में उन्हें मिसिंग ट्रेडर प्रॉब्लम की चपेट में लेकर बाजार से बाहर कर देगा ?
DTSTP के कारण छोटे ट्रेडर को न तो इनपुट क्रेडिट मिलता है, और न ही वह अन्य कारोबारी को इनपुट क्रेडिट दे पाता है। अत: सामान खरीदते समय जो जीएसटी वह चुकाता है वह लागत में जुड़ जाता है।
और जब कोई कारोबारी यह माल छोटे ट्रेडर से लेकर उपभोक्ता को बेचता है तो इनपुट क्रेडिट नहीं मिलने के कारण उसे इस माल को बेचने से जो जीएसटी मिलता है वह सरकार के पास जमा हो जाता है। इस तरह जिस भी कारोबारी श्रृंखला के बीच में कोई छोटा ट्रेडर होगा उस श्रृंख्ला में माल पर डबल जीएसटी आने से माल महंगा हो जायेगा !!
अत: खरीददार उस श्रृंखला से माल खरीदना बंद कर देंगे जिस श्रृंखला में कोई छोटा कारोबारी ( कम्पोजिट या अपंजीकृत ट्रेडर ) है।
इस तरह छोटे कारोबारी फुल जीएसटी में अपना पंजीयन कराने के लिए बाध्य हो जायेगे। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो नियमित जीएसटी वाले कारोबारी उनसे माल खरीदना बंद कर देंगे और वे बाजार से बाहर हो जाएंगे !!!
जल्दी या धीरे धीरे, कुल मिलाकर जीएसटी का परिणाम यह होगा कि -- बाजार में छोटे कारोबारियों धंधा सिकुड़ता जाएगा। वे बाजार से बाहर हो जाएंगे और चूंकि नए कारोबारी छोटे व्यवसायी होते है अत: नए कारोबारीयो की संख्या में भी कमी आएगी। छोटे कारोबारियों के बाहर होने और नए कारोबारियों के नहीं आने से बाजार में बड़ी इकाइयों का हिस्सा बढ़ जाएगा।
फलस्वरूप, छोटी इकाइयों का उत्पादन गिरेगा और बड़ी कंपनियों का बढ़ेगा। आंकड़ों में अर्थव्यवस्था बढ़ेगी जबकि वास्तविक रूप से घटेगी। और सकल रूप से घटेगी !!
इसी तरह से, छोटी इकाइयों के बंद हो जाने से बेरोजगारी बढ़ेगी, किन्तु बड़ी कंपनियों का कारोबार बढ़ने से उन्हें और कर्मचारियों की आवश्यकता होगी। तो वास्तविक रूप से रोजगार घटेगा लेकिन आंकड़ों में यह बढ़ेगा !! और सकल रूप से रोजगार घटेगा और बेरोजगारी बढ़ेगी !!
इसके अलावा अधेड़ एवं उम्र दराज रोजगार खो देंगे और बड़ी कंपनियों का कारोबार बढ़ने से वे ज्यादातर युवाओ को नौकरी पर रखेगी। इसीलिए, मध्य वय के लोगो में बेरोजगारी बढ़ जायेगी जबकि युवाओ में बेरोजगारी घटेगी !! लेकिन सकल बेरोजगारी में बढ़ोतरी होगी।
अब अमेरिका जैसे किसी देश पर विचार कीजिये जहाँ जीएसटी नहीं है, जबकि भारत जैसे देश में जीएसटी है। तब अमेरिका में छोटी इकाइयों का धंधा बढ़ेगा और नए लोग भी आसानी से कारोबार शुरू कर सकेंगे जबकि भारत में DTSTP व MTP के कारण छोटी इकाइयां तबाह हो जायेगी।
इस वजह से अमेरिका की अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में ज्यादा बेहतर ढंग से काम करेगी। ( ज्यूरी सिस्टम, राइट टू रिकॉल जैसे क़ानून उनकी अर्थव्यवस्था को और भी बेहतर कर देते है )
नए तथा छोटे कारोबारी कर्मचारियों की स्किल को सुधारने और उन्हें व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है। यदि किसी अर्थव्यस्था में छोटे कारोबारियों की संख्या घटेगी तो हुनरमंद कर्मचारियों की संख्या में कमी आएगी।
शिक्षण संस्थाओ से जो डिप्लोमा धारी छात्र निकलते है उन्हें अपनी स्किल को सुधारने का अवसर छोटी इकाइयां ही देती है। कॉलेज एवं अन्य अकादमिक प्रशिक्षण संस्थानो की इसमें कोई प्रायोगिक भूमिका नहीं होती। असली स्किल बाजार में प्रतिस्पर्धा से आती है, और तकनीशियनों को प्रशिक्षण छोटी इकाइयां मुहैया कराती है। दरअसल ज्यादातर प्रशिक्षण संस्थान टाइम पास के साधन है। अत: छोटी इकाइयों की संख्या में कमी आने से भारत में स्किल डेवलेपमेंट का पूरा आधार ही हिल जाएगा।
कुल मिलाकर, जीएसटी भारत एवं अमेरिका के बीच बिगड़ते शक्ति अनुपात को और भी बदतर बना देगा। और जैसे जैसे यह अनुपात बिगड़ता जाएगा वैसे वैसे अमेरिकी-ब्रिटिश धनिको एवं मिशनरीज का वर्चस्व भारत बढ़ता जायेगा।
(5) जीएसटी में मौजूद रिग्रेसिव टेक्स प्रॉब्लम = RTP क्या है ?
जीएसटी के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह एक प्रतिगामी ( रेग्रेसिव टेक्स ) कर है। प्रतिगामी कर के कारण अमीर लोगो को कम तथा गरीब लोगो अधिक टेक्स देना होता है। अत: पूरी दुनिया के धनिक प्रतिगामी कर प्रणाली चाहते है, और इसीलिए धनिकों द्वारा संचालित पेड मिडिया, पेड अर्थशास्त्री आदि भी हमेशा प्रतिगामी करो का समर्थन करते है। और वे नागरिको को इससे होने वाले नुकसान के बारे कोई सूचना नहीं देते।
प्रतिगामी कर क्या है ?
भिन्न भिन्न आय वाले तीन व्यक्तियों छोटू सिंह, बख्तावर मल और चैनसुख पर विचार कीजिये।
छोटू सिंह की मासिक आय : 3,000 रू
बख्तावर मल की मासिक आय : 30,000 रूपये
चैनसुख की मासिक आय : 3,00,000 रूपये
मान लीजिये कि तेल की दर 100 रूपये प्रति किलो है। छोटू महीने में दो किलो तेल का इस्तेमाल करता है, और इस मद में 100*2 = 200 रूपये मासिक खर्च करता है। बख्तावर और चैनसुख भी महीने में 2 किलो तेल खरीदते है, और इस मद पर 200 रूपये मासिक खर्च करते है। यदि तेल पर 30 रूपये कर है तो तीनो लोगो को समान रूप से 60 रु कर चुकाना होगा।
इसी तरह एक चाय कप 10 रूपये का है। छोटू दिन में 2 कप के हिसाब से महीने में 60 कप चाय पीता है, और इस मद में 60*10 = 600 रूपये मासिक खर्च करता है। बख्तावर और चैनसुख भी महीने में 60 कप चाय पीते है और प्रत्येक 600 रूपये मासिक चाय पर खर्च करता है। यदि चाय कप पर 2 रूपये टेक्स है तो तीनो लोगो को चाय पर 120 रू टेक्स देना होगा।
मान लीजिये कि छोटू महीने में 1000 रूपये की शक्कर, दाल और मिर्ची लाता है। बख्तावर और चैनसुख भी इतनी ही शक़्कर और मिर्ची का उपभोग करते है। यदि इन जिंसों पर टेक्स 12% है तो छोटू, बख्तावर और चैनसुख समान रूप से टेक्स के 120 रूपये चुकायेगें।
देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि तीनो लोगो ने समान वस्तुओ की खरीद पर समान टेक्स राशि चुकाई है, अत: यह न्यायपूर्ण कर प्रणाली है। किन्तु ऐसा नहीं है। दरअसल यहाँ कम आय वाला व्यक्ति ज्यादा एवं अधिक आय वाला कम टेक्स चुका रहा है !!!
चाय, सिनेमा एवं राशन पर छोटू द्वारा दिया गया टेक्स = 300 रूपये है। किन्तु उसकी मासिक आय 3000 रू है। अत: छोटू सिंह ने अपनी आय का 10% टेक्स में दे दिया है, जबकि बख्तावर मल की आय 30 हजार होने के कारण बख्तावर ने अपनी आय का सिर्फ 1% ही टेक्स दिया है। और चैनसुख की आय 3 लाख मासिक है। किन्तु समान वस्तुओ की खरीद पर चैनसुख ने अपनी आय का सिर्फ 0.1% टेक्स ही दिया है !!
इस तरह कम आय वाला व्यक्ति अपनी आय का एक बड़ा प्रतिशत टेक्स के रूप में चुका रहा है। यह एक प्रतिगामी कर है। वस्तुओ की बिक्री, उत्पादन, एवं सेवाओं पर टेक्स लगाने से ये कर प्रतिगामी हो जाते है। क्योंकि ऐसी कर प्रणाली की रचना मुमकिन नहीं है कि अमीर एवं गरीब आदमी के लिए वस्तुओ / सेवाओं पर करो की अलग अलग दरें बनायी जाएँ। क्योंकि न तो ऐसा करना व्यवहारिक है और न ही यह पता लगाया जा सकता है कि कौन गरीब है और कौन अमीर।
जीएसटी सभी प्रकार की वस्तुओ एवं सेवाओं पर लागू किया गया है। यदि कोई व्यक्ति 1500 रूपये महीना कमाता है और 1000 रूपये का राशन खरीदता है और राशन की जिंसों पर टेक्स 20% है तो उसे 200 रूपये टेक्स देना होगा। वह बिल ले या न ले। क्योंकि ट्रेडर चेन में यह जीएसटी लागत में जुड़ जाएगा। तो इस तरह से जीएसटी जैसा प्रतिगामी कर गरीब आदमी को और भी गरीब बना देता है।
(6) कैसे जीएसटी छोटी इकाईयों की लागत अतिरिक्त रूप से बढ़ाकर उन्हें बाजार से बाहर कर देगा।
6.1. जीएसटी को जान बूझकर इस तरह ड्राफ्ट किया गया है कि छोटे छोटे कारोबारियों को बहुत सारी खाना पूर्ती करनी होगी, और इससे उनकी लागत निरंतर बढती जायेगी। उदाहरण के लिए जीएसटी में हर महीने 1 से लेकर 6 तक रिटर्न फ़ाइल करने होते है। इसमें कितना स्टॉक है, कितनी बिक्री हुयी, कहाँ कितना माल भेजा आदि सभी ब्यौरे डालने होते है। और यह सब ऑनलाइन एवं कम्प्यूटराइज्ड है।
बड़ी कम्पनियो के पास अलग से एकाउंट्स डिपार्टमेंट होता है, अत उन्हें बिल, रिटर्न वगैरह भरने में किसी अतिरिक्त लागत का सामना नहीं करना पडेगा। उनका बिजनेस काफी फैला हुआ होता है, और बहुधा मालिक खुद फैक्ट्री में कदम भी नहीं रखता। अत: बड़ी कम्पनियो में सारा हिसाब रोज के रोज टेली कर लिया जाता है।
किन्तु छोटे कारोबारी धंधा भी करते है, और टेक्स रिटर्न आदि भी खुद ही भरते है। कई कारोबारी इन सब पचड़ो को समझते नहीं है। जीएसटी में प्रति माह रिटर्न फ़ाइल करने होंगे। अब वे खुद इसे करेंगे तो उनके कार्य घंटे कम हो जाएंगे, और वे इसमें उलझ कर अपनी कार्य क्षमता गँवा देंगे। यदि वे इसके लिए स्टाफ रखते है तो उनकी अतिरिक्त लागत बढ़ जायगी। यदि रिटर्न फ़ाइल करने की अवधि को मासिक से बदल कर त्रे मासिक ���र दिया जाता है, तो मिसिंग ट्रेडर प्रॉब्लम तीन गुना तक बढ़ जायेगी !!
6.2. जीएसटी में e-way बिल का प्रावधान है। यह जीएसटी में सबसे तेज धार वाली आरी है। इसके तहत यदि आप माल एक जगह से दूसरी जगह 1 किलोमीटर भी भेजना चाहते है, और यदि माल की कीमत 50,000 से अधिक है तो माल को ट्रक-टेम्पो में लोड करने से पहले ऑनलाइन बिल निकालना होगा।
इसमे ट्रक नंबर, ट्रांसपोर्ट कम्पनी का नाम, माल की लागत, संख्या के साथ गंतव्य स्थल भी लिखकर सबमिट करना होगा। अब यदि आपने बाद में इसमें कोई माल अतिरिक्त जोड़ दिया या कम किया मतलब आपका प्रोग्राम बदल गया है , तो फिर से संशोधित बिल निकालना पड़ेगा। इस बिल की कॉपी यदि ट्रक ड्राइवर के पास है तो ही वह माल लेकर जा सकता है।
e-way बिल सिस्टम बहुत ही अव्यवहारिक है, किन्तु यदि इसे लागू नहीं किया गया तो जीएसटी काम ही नहीं कर पायेगा, और एक समानांतर आपूर्ति श्रृंखला खड़ी हो जायेगी। और यदि इसे लागू किया गया तो छोटे और मझोले कारोबारियों को बड़े पैमाने पर आर्थिक दंड का सामना करना पड़ेगा और उनके माल की लागत बढ़ जायेगी !!
एक उदाहरण देखिये : मध्य प्रदेश का ट्रांसपोर्टर eWay बिल में ट्रक नंबर डालना भूल गया था। उस पर विभाग ने 1.32 करोड़ की पेनल्टी लगा दी। शिपमेंट की लागत 1.20 करोड़ है !! ट्रक की कीमत 15 लाख है !! और हाई कोर्ट ने मामला सुनने के बाद पेनल्टी चुकाने के आदेश दिए है !!! अब वादी सुप्रीम कोर्ट में धक्के खा रहे है।
Error in e-way bill filing proves costly, leads to Rs 1.32 crore penalty for Transport Company
देश भर में इस तरह की कई घटनाएं घट रही है, किन्तु पेड मीडिया में ये रिपोर्ट नहीं होती, और ज्यादातर मामलो में कर अधिकारी घूस वसूल कर माल छोड़ देते है। इस तरह जीएसटी डाल कर उन्होंने देश के लाखों छोटे मझौले कारोबारियों को कर अधिकारियो के पंजे में डाल दिया है।
ये लोग शिकारी की तरह कारोबारियों को ढूंढ रहे है। वे उन्हें पकड़ते और घूस वसूलते है। जो घूस नहीं देता उसका माल जब्त करके अख़बार में टेक्स चोर बोल के छाप दिया जाता है !!
तो सारा खेल इस तरह रचा गया है कि, छोटे-मझौले कारोबारी की लागत बढ़ेगी, पचड़े बढ़ेंगे, माल पकड़ा जाएगा, कर अधिकारी जांच के नाम पर छापे मारते रहेंगे और उनसे घूस वसूलते रहेंगे। यदि वे जीएसटी में नहीं आते तो डबल टेक्सेशन सिस्टम के शिकार होंगे, और जैसे ही जीएसटी में आयेंगे एकाउंटिंग, e-way बिल, रिटर्न फाईलिंग में फंसेंगे और अंततोगत्वा मिसिंग ट्रेडर प्रोब्लम की तलवार से कट जायेंगे।
हद है कि यह सब इतनी खामोशी से होता है, कि जो अपना धंधा खो देता है उसे कभी मालूम नहीं हो पाता कि एक गलत क़ानून ने उसका धंधा छीन कर बड़ी कम्पनियों के हवाले कर दिया है !!
और पेड मीडिया द्वारा लगातार यह सदाबहार गाना गाया जाएगा कि जीएसटी का विरोध वो कर रहे है, जो टेक्स चोर है !! पिछले 70 सालो में पेड मीडिया एवं पेड बोलीवुड द्वारा वैसे भी यह स्थापित करने में काफी मेहनत की गयी है कि भारत के कारोबारी टेक्स चोर ही होते है। तो अख़बार-टीवी से न्यूज फीडिंग रहने वाले नागरिक जीएसटी को अच्छी नजर से देखते रहेंगे।
पेड मीडिया ने पूरे देश को जीएसटी की दरों पर बहस करने में उलझा दिया है। जबकि सच्चाई यह है कि दरों से यहाँ कोई लेना देना ही नहीं है। और पूरा देश जीएसटी का क़ानून पढ़े बिना जीएसटी पर बहस कर रहा है !!
(7) जीएसटी-एन पर सरकार नियंत्रण कम और विदेशी कम्पनियों का नियंत्रण ज्यादा है ।
जीएसटी-एन वह कम्पनी है जो पूरे देश के जीएसटी के संचालन एवं प्रबंधन को ओपरेट करती है। कब कहाँ किस कम्पनी के पास किस तरह का कितना स्टॉक पड़ा है, उसके अप कमिंग ऑर्डर क्या है, कितना कच्चा माल या बना हुआ माल ट्रांसपोर्टेशन या स्टॉक में है आदि।
मतलब इस कम्पनी के पास पूरे देश की सभी कम्पनियों की व्यावसायिक सूचानाए होंगी। इसका बहुत ज्यादा व्यावसायिक महत्त्व है, और कोई कम्पनी अपने सेगमेंट की प्रतिस्पर्धी कम्पनियों का डेटा जुटाकर काफी लाभदायक रणनीति बना सकती है।
तो यह सारा काम एक प्राइवेट कम्पनी को दिया गया है, और इस प्राइवेट कम्पनी में 51% हिस्सा निजी कम्पनी का है। और इस पर विदेशियों की होल्डिंग है !! मतलब पूरे देश की अर्थव्यवस्था को चलाने वाले जीएसटी का संचालन हमने विदेशियों को देकर रखा है !! और आप जब किसी पेड बुद्धिजीवी से इस बारे में पूछेंगे तो वे इस पॉइंट को भी डिफेंड करने की कोशिस करते नजर आयेंगे !!!
जीएसटी कैग की सम्पूर्ण ऑडिट से भी वंचित है !!
जीएसटी के पूर्ववर्ती ड्राफ्ट की धारा 65 में यह प्रावधान था कि कैग जीएसटी काउंसिल से उगाहे गए राजस्व के बारे में सूचनाएं मांग सकता है। लेकिन जीएसटी काउंसिल के अध्यक्ष अरुण जेटली और अन्य राज्यो के मुखियाओं ने इस धारा को हटा दिया है। जीएसटी लगभग 15 लाख करोड़ की उगाही करेगा, लेकिन कैग द्वारा की जाने वाली इसकी ऑडिट को सीमित कर दिया गया है।
कैग की धारा 16 एवं 18 के अनुसार कैग को यह अधिकार दिया गया है कि देश तथा राज्य सरकारों द्वारा उगाहे गए सभी प्रकार के राजस्व एवं प्राप्तियों का अंकेक्षण करेगा। किन्तु सरकार नहीं चाहती थी कि कैग को जीएसटी की सम्पूर्ण ऑडिट का अधिकार दिया जाए।
CAG wants provision in GST law to seek 'any information' for audit
जीएसटी-एन भी कैग की ऑडिट से बाहर !!
जीएसटी द्वारा प्राप्त राजस्व के निर्धारण व उगाही के लिए जिस कम्प्यूटर नेटवर्क की आवश्यकता होगी, इस नेटवर्क को बनाने, चलाने का ठेका जिस कंपनी को दिया गया है उसे भी कैग की ऑडिट से बाहर रखा गया है !! उल्लेखनीय है कि 4000 करोड़ की यह कम्पनी खुद सर्विस टेक्स चोरी की जाँच का सामना कर रही है !!!
GSTN rejects CAG's request to name auditor, do an extra audit.
(8) समाधान
सबसे पहले तो हमें यह बात समझ लेनी चाहिए कि जीएसटी Beyond the Repair है। मतलब इसे सुधारा ही नहीं जा सकता। जितना ही आप इसके दोष ढूंढ कर सरकार से इन्हें ठीक करने की मांग करेंगे वे सुधार के नाम इसे और भी खतरनाक बनाते जायेंगे। सभी प्रतिगामी कर इसी प्रकार के होते है। मैं प्रतिगामी कर होने के आधार पर ही इसे ख़ारिज कर देता हूँ। वेट भी प्रतिगामी कर है।
यदि हमें अपनी छोटी इकाइयां बचानी है तो प्रगामी कर प्रणाली चाहिए। पेड मीडिया में लिखने वाले पेड विशेषग्य जीएसटी के गुणगान इसीलिए करते है क्योंकि यह एक प्रतिगामी कर है।
समाधान वेल्थ टेक्स है। वेल्थ टेक्स एक प्रगामी कर है। और इस वजह से ये न्यायपूर्ण है।
हमारा प्रस्ताव है कि सरकार को व्यक्ति द्वारा धारण की गयी वेल्थ पर टेक्स लेना चाहिए। हमारे प्रस्ताव के मुख्य बिंदु निम्न है :
8.1. वेल्थ में मुख्य रूप से जमीन को शामिल किया गया है। इसके अलावा सोना, चांदी, महंगी धातुएं, हीरे एवं इसी प्रकार के कीमती पत्थर, महंगी कलाकृतियाँ , पेंटिंग्स, अंशपत्र, ऋण पत्र, बांड्स आदि शामिल है। वेल्थ टेक्स का मुख्य लक्ष्य जमीनों को कर के दायरे में लाना है।
जमीन एवं फ्लेट में भूखंड, कृषि भूखंड, फ्लेट्स, इमारतें, कार्यालय, तथा किसी भूखंड पर निर्माण से प्राप्त हुआ स्वामित्व शामिल है । शब्द फ्लेट में सभी प्रकार के निर्माण, अपार्टमेन्ट, बंगले, कार्यालय, गोदाम, इमारते, औद्योगिक शेड्स तथा इनमे किये गए सभी प्रकार के निर्माण शामिल है ।
8.2. राष्ट्रीय स्तर पर वेल्थ टेक्स का संग्रहण एवं नेशनल वेल्थ टेक्स ऑफिसर करेगा। वेल्थ टेक्स ऑफिसर प्रजा के अधीन होगा। अर्थात देश के नागरिक इस अधिकारी को बहुमत का प्रयोग करके नौकरी से निकाल सकेंगे। इस प्रावधान के कारण वेल्थ टेक्स ऑफिसर धनिक वर्ग के साथ मिली भगत बनाकर जनता के साथ धांधली नहीं करेगा।
8.3. प्रति व्यक्ति 25 वर्ग मीटर रिहाइश भूमि, 50 वर्ग मीटर निर्माण एवं 2 एकड़ कृषि भूमि कर मुक्त होगी। प्रति पुरुष 100 ग्राम स्वर्ण एवं प्रति महिला 500 ग्राम स्वर्ण कर मुक्त होगा। इससे अधिक भूमि या स्वर्ण आदि होने पर प्रत्येक व्यक्ति को धारण की गयी अतिरिक्त वेल्थ पर 1% सालाना टेक्स देना होगा। यदि व्यक्ति ने आयकर चुकाया है तो चुकाया गया आयकर देय वेल्थ टेक्स में घटा दिया जाएगा।
60 वर्ष से अधिक उम्र के नागरिको को ये छूट 2 गुनी एवं 80 वर्ष से अधिक उम्र के नागरिको के लिए ये छूटे चार गुना होगी। इससे उन नागरिको पर वेल्थ टेक्स नहीं आएगा, जिनके पास बेहद कम या जीवन यापन कर पाने जितनी ही वेल्थ है।
8.4. सभी प्रकार के ट्रस्ट, सोसाईटीयां, सिमितियाँ, एनजीओ, न्यास, क्लब, राजनैतिक पार्टियाँ, धर्मार्ध संगठन, अस्पताल, स्कूल, मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि सभी इकाइयां वेल्थ टेक्स के दायरे में होगी। किन्तु यदि कोई चेरिटेबल ट्रस्ट आदि चाहे तो जिन सदस्यों को वह सेवाए देता है प्रति सदस्य 500 रू सालाना की छूट प्राप्त कर सकता है।
प्रत्येक नागरिक ऐसे 5 संगठनों को 500 रूपये की छूट दे सकता है। इस तरह जो संगठन वास्तविक अर्थो में सेवाए दे रहे है उन्हें सेवाग्राही सदस्य अपने हिस्से की छूट दे देंगे और उन पर प्रभावी वेल्थ टेक्स कम हो जाएगा। भारत में कुल 33 लाख एनजीओ है।
इनमे से ज्यादातर संगठन सरकारी अनुदान में भूमि ग्रहण करते है और इन्हें अकार्यशील बना देते है। इसके अलावा धनिक वर्ग अपने धन को कर मुक्त करने के लिए ट्रस्ट खोल लेते है और इस ट्रस्ट के नाम पर जमीनों का संग्रहण करते है। इस प्रावधान से फर्जी संगठनों के भूमि संग्रहण करने की प्रवृति में कमी आएगी।
8.5. किसी भी प्रकार का विवाद होने की स्थिति में मामले की सुनवाई नागरिको की ज्यूरी करेगी। ज्यूरी मंडल का चयन मतदाता सूचियों में से रेंडमली किया जायेगा।
वेल्थ टेक्स का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव संक्षेप में :
आज भारत में कारोबार करने या निर्माण करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती जमीन की ऊँची कीमते है। वेल्थ टेक्स आने ने धनिक वर्ग द्वारा संग्रहित की गयी अकार्यशील भूमि पर उन्हें कर चुकाना होगा। इससे उन्हें नुक्सान होगा और वे कर से बचने के लिए इस भूमि का व्यावसायिक उपयोग करने लगेंगे या फिर इन्हे रिहाईश या व्यावसायिक उद्देश्य के लिए बेच देंगे। इससे बाजार में जमीन की आपूर्ति बढ़ेगी और जमीन सस्ती हो जायेगी। देश में जमीनों के दाम 5 से 10 गुना तक गिर जाएंगे।
जमीने सस्ती होने से व्यापार करना एवं निर्माण इकाइयां लगाना आसान हो जायेगा और वस्तुओ की निर्माण लागत गिरेगी। बड़े पैमाने पर छोटी और मझौली इकाइयों की स्थापना से रोजगार का सृजन होगा, महंगाई घटेगी, प्रतिस्पर्धा बढ़ने से निर्माण की गुणवत्ता में सुधार आएगा और भारत का निर्माण उद्योग तकनिकी रूप से ज्यादा विकास करेगा। तकनिकी गुणवत्ता हासिल करने से भारत आधुनिक स्वदेशी हथियारों के उत्पादन की क्षमता जुटा लेगा और हमारी सेना आत्मनिर्भर और मजबूत होगी।
वेल्थ टेक्स आने से अर्थव्यवस्था में अन्य किस तरह के सकारात्मक परिवर्तन आयेंगे, और कैसे यह तकनिकी उत्पादन को बूस्ट करेगा, इस बारे में विस्तृत विवरण मैं फिर किसी जवाब में लिखूंगा।
(00) तो हमारे सांसदों ने इतना घटिया क़ानून देश में कैसे लागू कर दिया?
असल में प्रश्न यह है कि , कितने सांसद-विधायक इन कानूनों को पढ़ते है या इन्हें समझने में अपना समय देते है !! दरअसल उन्हें क़ानून पढने के लिए टाइम ही नहीं होता। उन्हें दुसरे अन्य जरुरी काम करने होते है।
इन्हें अपने आदमियों को अच्छी जगह पर नियुक्त करवाना होता है, ताकि उनके माध्यम से पैसा बनाया जा सके। इन्हें सभाओं में जाकर फूल मालाएं पहननी होती है, भासण देने होते है, लोकार्पण करने होते है, और इन सब गतिविधियों के फोटो अखबारों में छपवाने होते है। इन्हें उन उद्योग्पतियों से पैसा लेना होता है जिन्हें ये पद पर रहते हुए मदद कर रहे है। फिर इन्हें परिवार के साथ विदेश यात्राएं करनी होती है। टीवी पर आकर बयान देने होते है।
और सबसे बड़े और दो जरूरी काम जो इन्हें करने होते है :
1) इन्हें पद का दुरूपयोग करके कमाए गए अपने अकूत धन को छुपे हुए ढंग से निवेश करना होता है।
2) अगले चुनाव में टिकेट लेने के लिए अगले पूरे 5 वर्ष तक ऊपर तक सेटिंग बनाने की कोशिस करते रहने होती है। क्योंकि यदि टिकेट नहीं मिला तो राजनीति ख़त्म हो जायेगी।
इन सभी कामो में पूरी तरह से डूबे रहने के कारण हमारे ज्यादातर सांसद, विधायक एवं मंत्री कानूनों को समझने में माथापच्ची नही करते !!!
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तो देश में इस तरह के क़ानून इसीलिए लागू हो रहे है क्योंकि पेड मीडिया ने भारत के कार्यकर्ताओ को नेताओं के भाषण सुनाने में व्यस्त किया हुआ है। पूरे देश में मीडिया ने बहस छेड़ रखी है कि 2019 में पीएम कौन होगा। जबकि असली मुद्दा यह होना चाहिए कि कौनसे क़ानून देश में लाने चाहिए और किन कानूनों को ख़त्म किया जाना चाहिए। यदि जीएसटी जारी रहा तो अर्थव्यवस्था का भट्टा बैठता जायेगा। फिर पीएम चाहे कोई भी बने !!
तो कार्यकर्ताओ को इस बात पर ध्यान देना बंद करना चाहिए कि अगला पीएम कौन होगा, बल्कि उन्हें पीएम से अच्छे कानूनों को गेजेट में छापने की मांग करनी शुरू करनी चाहिए।